कहमुकरी
ख्वाब सजाकर रखती हूॅं नित।
उन्हें छुपाकर रखती हूॅं चित।।
रहती फिर भी जग में तन्हा।
क्या सखि? साजन! न सखी! कन्हा।।०१।।
याद उन्हें ही कर मैं खोयी।
चरणों में सिर रखकर सोयी।।
करे न कोई सन्मुख दोहन।
क्या सखि? साजन! न सखी! मोहन।।०२।।
हृदय बसाकर रूप सलोना।
पुलकित रहता मन का कोना।।
रखते वे ही मुझे सम्हाल।
क्या सखि? साजन! न सखि! गोपाल।।०३।।
बसते वे अंतर्मन में हैं।
रहते वे हर धड़कन में हैं।।
उनके बिना साँसें अवरुद्ध।
क्या सखि? साजन! न सखि! अनिरुद्ध।।०४।।
अपनी व्यथा कही कुछ उनसे।
प्रीत डोर मैं बाँधी जिनसे।।
उनके बिना हो जाती क्लांत।
क्या सखि? साजन! न सखि! श्रीकांत।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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