Site icon पद्यपंकज

कष्ट – बैकुंठ बिहारी

कष्ट
बाल्यावस्था से ही यह माया,
किशोरावस्था में भी, न छोड़ती किसी की काया,
कभी कुछ खोने का कष्ट,
कभी कुछ छूटने का कष्ट,
कष्ट का है यह मायाजाल,
सुख सुविधा का भी ऐसा ही मायाजाल,
जिसे अपना समझो
उसके धोखे का मायाजाल,
पराये का भी ऐसा ही है यह मायाजाल,
विश्वास से विश्वासघात तक फैला यह मायाजाल,
प्रेम से अप्रेम तक पहुँचता यह मायाजाल,
परार्थ से स्वार्थ तक फैला यह मायाजाल,
प्रीति से घृणा तक फैला यह मायाजाल,
कर्म से अकर्म तक फैला यह मायाजाल
वितृष्णा से तृष्णा तक फैला यह मायाजाल,
इस मायाजाल की समझ है जिसे,
वही है सच्चा स्थितप्रज्ञ,
जीवन है जिसका एक यज्ञ,
जिसे न दुख की आंधी की चिंता,
न सुख की वर्षा की परवाह,
यही है सच्चा जीवन दर्शन।
यही है सच्चा जीवन दर्शन।।
प्रस्तुति
बैकुंठ बिहारी
स्नातकोत्तर शिक्षक
कम्प्यूटर विज्ञान
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, सहोड़ा गद्दी, कोशकीपुर।

1 Likes
Spread the love
Exit mobile version