कोसी
तोड़ के सारी सीमाओं को
छोड़ के पिछे बाधाओं को,
पीहर आई हैं सब मिलने
ये “सातो” नदियाँ हैं बहनें।
आया लेने भाई “सावन”
स्नेह-सूत बंधवाने “पावन”,
इठलाती बलखाती नदियाँ
घूमने चली मिथिला की गलियाँ।
कमला, गण्डकी और लखनदेई
देख “भाई” को फूली समाई,
बाँध का बन्धन तोड़ के सारा
बागमती, बाया, अधवारा।
मिलकर चली हवा की जैसी
जहाँ अधीर खड़ी थी “कोसी”
हम बहनों को मिल लेने दो,
कुछ दिन संग हमें रहने दो।
तुम्हें दुआएँ दे जाएँंगी
धन-धान्य तुम्हें कर जाएँगी,
नदियाँ तो है “बेटी”जैसी
रुकती कहाँ है वह “परदेसी”।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तव
राज्यकृत मनोरमा उच्चतर विद्यालय जमालाबाद, मुजफ्फरपुर
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