कोयल की मीठी बोली
हरे-भरे पेड़ों पर बैठकर
कोयल कूँ-कूँ गाती है,
सुनकर कोयल की बोली
बच्चे खुश हो जाते हैं।
कोयल की बोली-से-बोली
बच्चे जब मिलाते हैं,
जोर-जोर से गाती है कोयल
सस्वर गीत सुनाती है।
जरा सी आहट पाकर कोयल
उड़कर दूर चली जाती है,
वहाँ भी किसी डाली पर बैठकर
अपनी मीठी तान सुनाती है।
मधुर स्वर में गाती जब कोयल
प्रकृति का मान बढ़ाती है,
बाग-बगीचे खुश होते हैं
खुशियाँ खूब लुटाती है।
कोयल की कूक, मौसम को
मनभावन सा बनाती है,
बोली इतनी है प्यारी कि
सबको प्यारा लगता है।
देती कोयल संदेश हमें
सुमधुर बोल बोलें हमसब,
अपनी वाणी की मधुरता से
औरों को खुशियाँ मिल सके।
उद्देश्य हमारा कोयल जैसा हो
खुशियाँ खूब फैलाएँ हम,
अंतिम पंक्ति के लोगों के
चेहरे पर खुशियाँ लाएँ हम।
भवानंद सिंह
उ. मा. वि. मधुलता
रानीगंज, अररिया
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