पद्धरी छंद
सम -मात्रिक छंद, 16 मात्राएँ
आरंभ द्विकल से,पदांत Slअनिवार्य।
प्रकट सिद्धिदात्री दिव्य भाल।
आभासी अतिविकट विकराल।।
पूर्ण कर अभ्यागत के आस।
भर दें संस्कारित सुर सुभाष।।
मात को करे जगत्सत्कार।
रे मनमा !अब बचा दिन चार।।
है माॅं में अद्भुत तेज पुंज।
सुखमय जीवन का नव्य गुंज।।
बहती गंगा-सी पुण्यधार।
होता मन का नित्य उपचार।।
पढ़ सका नहीं लिखा प्रारब्ध।
होगी तुम से प्रतिष्ठा लब्ध।।
करके आया हूॅं शांत चित्त।
तू जान रही माॅं मम निमित्त।।
जो लगता हो दीजिए उचित।
अरदास करूॅंगा अवश्य नित।।
थक रहे नहीं दृग देख भीड़।
सब संग लिए हैं पृथक पीर।।
चुको ना ऐसे में’अनजान’।
ले लो माॅं से आशीष दान।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
प्रखंड पंडारक
0 Likes

