मां
तेरा विस्तार करुँ कैसे ओ माँ,
तू शब्दों का मोहताज नहीं,
तेरा वर्णन दिव्य अलौकिक है,
यह मेरे वश की बात नहीं।
ईश्वर भी नतमस्तक होते,
तेरी ममता से कुछ बड़ा नहीं,
तेरा हृदय इतना कोमल है,
लफ़्ज़ों में कहना सरल नहीं।
तेरा प्रेम है मेरा रक्षा कवच,
गर घाव मुझे लग जाए कहीं,
निज प्यार से ऐसे सींचती माँ,
उस दर्द का कोई भान नहीं।
नूतन कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार
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