मॉं
छोटे-छोटे कदमों से चलना तू हमें सिखलाती,
खुद पीछे रहकर, आगे हमें बढ़ाती,
जब मैं छोटी थी तब तू बिस्तर पर अकेली छोड़ जाती,
तुझे आसपास न देखकर,
मैं जोर जोर से चिल्लाती,
सुन आवाज तू दौड़ी मेरे पास चली आती,
आकर मुझे जोर से सीने से लगाती।
फिर धीरे-धीरे इधर-उधर की बातें कहकर मुझे तू जोर से हंसाती,
जीवन की पहली शिक्षक बनकर पाठ पढ़ना हमें सिखलाती,
स्कूल क्या होता है ? यह तू हमें समझाती!
स्कूल से लेकर कॉलेज तक के सफर में,
मेरे संग तू भी रातों को जग जाती,
जीवन के हर क्षेत्र में, अपने अनुभव से हमें अवगत कराती,
संस्कार और लज्जा स्त्री का होता गहना,
तेरे सिवा और किसी से मैं, यह कहां सीख पाती,
ये तब समझ आई जब तूने मेरी ब्याह रचाई,
मैं तब बहुत खुश हो जाती,
जब मैं तेरी “परछाई” कहलाती।
अगर मुझसे कोई पूछे वह क्या है जिसे कभी कोई नाप न पाता,
तो मेरे होंठों से “मां के प्यार की गहराई” ही शब्द आता।।🙏🙏
✍️नाम :— प्रियंका कुमारी ✍️
विद्यालय:—-प्राथमिक विद्यालय रहिया टोल
प्रखंड :—- बायसी
जिला :—- पूर्णिया