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मैं त्रयलोकपावनी गंगा हूँ-मनु कुमारी

मैं त्रयलोकपावनी गंगा हूँ

मैं हूँ गंगा!
त्रयलोकपावनी, पापनाशिनी, भवमोचिनी ,
भवतारिणी, भवभामिनी गंगा l

मैं हूँ सकल मनोरथ पूर्ण कामिनी,
कर स्नान मुझमें प्राणी पाते हैं,
सभी कष्टों से निजात l
त्रयतापों से करती हूँ मैं मुक्त l
मैं हीं आती हूँ काम,
जब होता है महाप्रयाण l

मैं हूँ गंगा !
मैं देवनदी, भागीरथी, विष्णुपदी, मंदाकिनी l
मुझसे शुभ कार्यों का आरंभ,
मेरे स्पर्श से इस नश्वर देह का होता है अंत l

सबको वर मैं देनेवाली,
पुण्यात्मा और पापात्मा,
सबको मैं अपने गोद में देती स्थान हूँ l
मैं मैली क्यों न हो जाऊँ पर
मैं सृष्टि के सभी प्राणियों को सुरक्षित रखती हूँ, अपने पवित्र, आँचल मेंl
मैं गंगा हूँ l
पतित पावनी गंगा हूँ l

मैं पवित्र कर दूंगी,
मनचाहा वर दे दूंगी,
संसार सागर से पार कर दूंगी,
समस्त पापों का नाश कर दूंगी,
ये सोचकर लोग करते हैं मुझमें स्नान l

मेरे पुत्र भीष्म को भी नहीं मिला त्राण l
शरशय्या पर हीं त्यागे थे जिसने निज प्राण l
किया करते थे जो श्रद्धा भाव से नित गंगा स्नान l
कर्मफल से सब पाता है मानव,
ये है विधि का विधान l
सत्कर्मी को आवश्यक नहीं है कोई गंगा स्नान l
सदाचार का पालन करने से,
ध्यान ज्ञोग युक्त ईश्वर भक्ति से,
आध्यात्म ज्ञान में डुबकी लगाकर, करते हैं निज कल्याण l
मैं सुरसरि ऐसे दिव्य पुरूष का, करती हूँ गुणगान। 
विष्णु चरण से प्रकट हुई मैं,
शंकर जी अपने जटा में मुझे दिए स्थान l
मैं हूँ गंगा,
त्रयलोकपावनी, पापनाशिनी, भवमोचिनी, भवतारिणी गंगा l

स्वरचित:-
मनु कुमारी
मध्य विद्यालय सुरीगाँव
बायसी पूर्णियाँ बिहार 

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