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मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी-निधि चौधरी

मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी

मैं हूँ पूर्वजों की शान की हिन्दी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

आज संकुचित क्यों हुई हिन्दी,
धुंधलाई सी माँ भारती की मस्तक की बिंदी।
अनेकता में एकता की समाधान की हिन्दी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

यूँ तो भाषाओं की मैं पटरानी,
व्यथित हुई आज मेरी कहानी।
मैं संस्कृति की सम्मान की हिंदी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

सम्पूर्ण भरतवर्ष को एक डोर में मैं बांधती,
कई धाराओं को एक धारा में मैं साधती।
मैं आम जनों की अरमान की हिन्दी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

युगों युगों की मैं संस्कृति,
माधुर्यता मुझमें कल कल बहती।
आधुनिकता में बन गई अनजान सी हिन्दी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

मैं इक्कीस कोटि जन में पूजित भाषा,
जन जन के शुभ संवाद की मैं अभिलाषा।
मैं पुरखों की अभिमान की हिंदी,
बचा लो मुझको, मैं हिन्दुस्तान की हिन्दी।

निधि चौधरी
प्राथमिक विद्यालय सुहागी
किशनगंज, बिहार

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