Site icon पद्यपंकज

मातृभूमि-देव कांत मिश्र

Devkant

मातृभूमि

मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है।
इसकी नित रक्षा की खातिर, सुन्दर भाव जगाना है।।

देखो माटी चंदन जैसी, लगती कितनी प्यारी है।
खुशबू इसकी सौंधी होती, भाती जन को न्यारी है।।अपनी वसुधा से ही प्रतिदिन, सच्चा प्यार बढ़ाना है।
मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है।।

अडिग हिमालय शान दिखाता, माँ गंगा अति प्यारी है।
प्रहरी बनकर रक्षा करता, दूजा पाप निवारी है।।
मनुज धर्म से कभी न हटना, पाठ यही सिखलाना है।।
मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है।।

पावन-भावन नदी यहाँ की, मन सबका हर्षाती है।
एक-एक ऋतु यहाँ सुहानी, सौम्य सुधा बरसाती है।
दीन-हीन निर्बल हर जन को, हमको गले लगाना है।
मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है।।

मातृभूमि के वीर बाँकुरे, मन से कर्म निभाते हैं।
प्राणों की बलि वेदी चढ़कर, माँ का कर्ज चुकाते हैं।।
शूर वीर ऐसे सपूत में, अनुपम जोश बढ़ाना है।।
मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भागलपुर, बिहार

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version