Site icon पद्यपंकज

मेघा-मधुमिता ‘सृष्टि’

Madhumita

 

मेघा

मेघा रे मेघा रे, अंबर की बगिया में छा जा रे……
संग तेरे नाचे मेरा मन मयूरा रे…
उमर- घुमर कर प्यासी धरा पे छा जा रे……
खुशियों की बूंद बनकर सारे जहां में बरस जा रे…
मेघा रे मेघा रे अंबर की बगिया में छा जा रे….

कर दे शीतल तपती उमस को
कर दे मदमस्त हर जीवन को

सुनकर, प्रकृति की पायल की झनकार
थिरक उठे हैं कदम झूमने को हुई बेकरार

आओ झूमे कुदरत के संग
रंग जाए सृष्टि बूंदों के रंग।

मेघा रे मेघा रे अंबर की बगिया में छा जा रे…
संग तेरे नाचे मेरा मन मयूरा रे…
उमर-घुमर कर प्यासी धरा पे छा जा रे…
खुशियों की बूंद बनकर सारे जहां में बरस जा रे…

कितनी पावन है यह बूंदे, न इनमें कोई भेदभाव
सब को भिगोये एकसमान,
पेड़-पौधे, पशु-पक्षी या हो इंसान

हर हृदय में प्रेम भर दे
नवजीवन का उमंग भर दे।

कर दे पावन तपते उर को, भरके की अपनी शीतलता
धूल जाए हर विकार, रह जाए शेष, केवल मानवता

मेघा रे मेघा रे अंबर की बगिया में छा जा रे…
संग तेरे नाचे मेरा मन मयूरा रे…
उमर घूमर कर प्यासी धरा पर छा जा रे…
खुशियों की बूंद बनकर सारे जहां में बरस जा रे…
मेघा रे मेघा रे अंबर की बगिया में छा जा रे…

मैं घोषणा करती हूं कि मेरी यह रचना स्वरचित,मौलिक और अप्रकाशित है।
ओम शांति

✍️ मधुमिता ‘सृष्टि’

पूर्णिया (बिहार)

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version