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मेरी कविता-गिरिधर कुमार

मेरी कविता

मेरी कविता
मत हो उदास
सोच भी नहीं सकता
बिना तुम्हारे
कुछ भी…

क्या हुआ
जो स्याह सी है आबोहवा
पसरी हुई हैं
खामोशियां
किसी कोरोना की
कोई वजह है
और चुपचाप से हैं सभी।

मेरी कविता
लेकिन तू तो है न
बहुत है भिड़ने के लिए यह
झंझावातों से
नकार की बातों से
भय के उच्चाप से।

तुझे अब ही तो
साबित करना है
स्वयं को
साथ में हमें भी
हमारे नौनिहालों को भी
तुझे रखनी है चैतन्य दुनिया
इन उलझनों के बीच भी।

मेरी कविता
मत हो उदास
अभी आस बाकी है
सवेरा होना है अभी
यह तय भी है
यही सच भी है।

मेरी कविता
अभी थकना मना है
चलनी है
कोसों की मंजिल
अपने युग के साथ
करना है नवीन शंखनाद
उस उत्तल शिखर से
अपरिमित है जो
असीम है जो।

मेरी कविता
मत हो उदास…

गिरिधर कुमार

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