मित्र
मँझधार में जब पड़ा हो जीवन
दे पग-पग साथ रख निर्मल मन
संबंध भले ही कोई ना उनसे
पर बाँध रखे स्नेहिल सा बंधन
हो यही एक मित्र समर्पण
ईश्वर का बनाया अनमोल बंधन
हर परिस्थिति संग रहे आजीवन
जीवन सुरभित हर्षित हो जाए
हिय के द्वार जब रखे कदम
हो यही एक मित्र समर्पण
जर्जर मानस हो या आहत मन
पतझड़ को भी बना दे मधुबन
स्नेह की अविरल सरिता से
सींचित कर दे उपवन निर्जन
हो यही एक मित्र समर्पण
हर खुशियों का होता जो दर्पण
सुख-दुःख संग होता अनुबंधन
उर की हर पीड़ा को पढ़ ले
नेह का ऐसा बँधा हो बंधन
हो यही एक मित्र समर्पण
ना हो जाति-पाँति का बंधन
साथ चले गर पथ हो दुर्गम
हृदय के हर अंश खिल जाए
ज्यों कृष्ण-सुदामा का संगम
हो यही एक मित्र समर्पण
गर नाउम्मीदी से भरा हो दामन
दूर करे हर विपदा का क्रंदन
अंतर्मन को कर वो आलोकित
शब्द-शब्द बहाए गंगाजल पावन
हो यही एक मित्र समर्पण
अर्चना गुप्ता
म.वि.कुआड़ी
अररिया बिहार