नश्वर दुनियाँ
कितनी नश्वर है प्रभु तेरी दुनियाँ
फिर भी पल-पल द्वेष बढ़ आए
स्वार्थपाश में बँधे हुए सब ही तो
रह एक-दूजे संग सदा दंभ दिखाए
कालचक्र की गति कुटिल है देखो
क्षण-क्षण, पल-पल बीता ही जाए
हो आत्ममुग्ध करे सब तेरा-मेरा
‘मैं’ के मोहपाश से निकल न पाए
राजा हो चाहे कोई रंक, भिखारी
अंत समय मौत को ही गले लगाए
जानते सब, अंतिम सत्य ये शाश्वत
फिर क्यों सब मन में द्वेष बढ़ाए
आओ अंतस के तिमिर मिटाकर
सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएँ
शुभकर्मों से कर तन-मन निश्छल
जीवन को सहज सार्थक बनाएँ
भूले से भी हो कोई भूल न हमसे
नित मंजिल को बस बढ़ते जाएँ
हो समर्पित प्रभु के चरणों में हम
निज कर्म से धरा को स्वर्ग बनाएँ
अर्चना गुप्ता
अररिया बिहार
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