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नववर्ष-अर्चना कुमारी

नववर्ष

नववर्ष की स्वर्णिम मंगल बेला में
आओ मिलकर नई शुरुआत करें
जीर्ण-शीर्ण जो हुई हृदय-दीवारें
कारण जान, उसपर मिल बात करें। 

डाल कटु बातें अंतस के हवनकुंड में
हर्षित मन से एकदूजे में विश्वास भरें
जीवन की बाती बुझ जाने से पहले
सदाचार के पुष्प बिखरे, अभ्यास करें। 

छिपा हुआ है जिनके मन का सूरज
बन आलोक बिंदु, राहें दीप्तमान करें
हो ना वाकशूलों से छलनी हियतल
ले दृढ़ संकल्प अंतस, ये आह्वान करें। 

दीप जलाएँ सदा ही प्रेम-सौहार्द्र के
घृणा-क्रोध-ईर्ष्या का समूल नाश करें
दूर हो दिखाऊ संवेदनाएँ खोखली
स्नेह-ममत्व से आत्मिक प्रयास करें। 

सदगुणों से पुष्पित हो जीवन सबका
प्रफुल्लित प्रेमनिधि संग समभाव रहें
धर धीर नवलक्ष्य ले, पग रखें सद्पथ
नवयुग उत्कर्ष संग शांति सद्भाव रहे। 

हो प्रेमघट लिए नवल समस्त सृष्टि
आह्लादित मन से मंगलोच्चार करें
सदा प्रवाहित हो उम्मीद की सरिता
सकल धरा सर्वहित जनसंचार करें। 

नव संकल्प संग तय हो दशा-दिशा
महके जनजीवन, आशा की बेल बढ़े
मिल जाए जन-जन को मंजिल अपनी
विश्व शांति समर्पित, नव-प्रतिमान गढ़ें। 

अर्चना गुप्ता
अररिया बिहार

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