Site icon पद्यपंकज

पानी – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

Oplus_131072

पानी तू रंगहीन होती, फिर भी तेरे रंग अनेक,
श्रेष्ठ विलायक बनकर तू कितनों को करती एक,
आंखों का पानी, हो सबके आंखों में थोड़ा पानी,
ऐसा कृत्य न कर कि होना पड़े तुझे पानी पानी,
अपना मार्ग, अपनी दिशा खुद बनाता पानी,
जिस पात्र में रखो, उसी के आकार में ढले पानी,
बूंद-बूंद गिरे तो शिलाओं में छेद कर देती पानी,
तीव्रता नहीं, स्थिरता-लगन-निरंतरता की रवानी,
पानी यदि बहाव के साथ चल दे, फिर कोई रोके नहीं,
ऐसी ही होती है प्रकृति में, हर स्थान में यह पानी,
जल ही तो जीवन है, बहुत उपयोगी वस्तु है पानी,
पानी में बसे बहुत जीव, पर मीन जल की रानी,
जीवन भी जल की तरह ही सदा होना चाहिए,
सहज, शालीन, अर्थपूर्ण, हो परोपकारी कहानी,
स्थिरता- लगन-निरंतरता के साथ बहने वाला,
सभी परिस्थितियों में ढल जाय हमारी कहानी,
हम जल की तरह बने, कितने जीवों का पनाह,
स्वच्छता दे, निर्मलता दे, कर्तव्यशील रहे पानी,
हर किसी की प्यास बुझाती, भोजन पचाती पानी,
अपने सुकृत्यों से बन जाना, जैसे हो हमारी पानी,
पर ऐसा कृत्य कभी न करना कि होना पड़े पानी-पानी।
.…….गिरीन्द्र मोहन झा

1 Likes
Spread the love
Exit mobile version