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कल से पक्का पढूंगा – अवधेश कुमार

कल से पक्का पढ़ूंगा – बाल हास्य कविता
आज बहुत रात हो गई ,
फिर वही बात,
कॉपी खुली है पर नींद का है साथ।
माँ ने पुकारा — “बेटा, अब अच्छे से सो जा,”
बोला — “कल से पक्का पढ़ूंगा माँ!”
दिनभर खेला, फिर मोबाइल में रम गया,
पन्ने खुले मगर मन कहीं गुम गया।
अधूरे सपनों की थकान में डूबा,
पढ़ाई का वादा फिर रह गया अधूरा।
पिता की आँखों में उम्मीदों की रौशनी,
कहा — “बेटा अब बस मेहनत कर पूरा।”
दिल बोला अंदर से — “हाँ, हाँ, करूंगा,”
“बस आज बहुत रात हो गयी है… कल से पक्का पढ़ूंगा।”
घड़ी की सुई रात को पार कर जाए,
नींद में किताबों की बातें गुम हो जाएं।
सपनों में डॉक्टर, टीचर, इंजीनियर बनेगा,
सुबह उठते ही फिर वही आलस तनेगा।
सपनों की नई उड़ान भरूँगा ।
कल से पक्का पढूंगा ..
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल

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