पानी
पानी की है बात निराली,
इससे दुनियाँ में हरियाली।
इसके बल पर दुनियाँ में,
सजती है लोगों की थाली।
पानी से ही आग बुझाते,
खेतों में हम फ़सल उगाते।
पानी से होती साफ-सफाई,
ऊँचे-ऊँचे महल बनाते।
पानी के कारण रक्त है बहता,
रहती है निर्मल यह काया।
बिना पानी दुर्लभ है जीवन,
रग-रग में है सबके समाया।
पानी से आँसू हैं बनते,
सुख-दुख की भावनाएँ।
हर्ष-बिषाद, हास्य-क्रंदण,
विभिन्न मानवीय संवेदनाएँ।
प्यासे की यह प्यास बुझाता,
भूखे को देता है राहत।
थके-हारे में जोश जगाता,
सबको है इसकी चाहत।
फसलों में यह दाना भरता,
पौधों को देता यौवन।
जलचर, नभचर, चल-अचल,
पानी पर निर्भर सबका जीवन।
पानी का कोई रंग नहीं है,
सबके जीवन में रंग भरता है।
अंडज-पिंडज, स्वेदज-उष्मज,
पानी पर निर्भर करता है।
बहुत श्रोतों से हमको मिलता,
तीन रूप इसका है दिखता।
ईश्वर ने निःशुल्क दिया है,
पर आज घर-घर है बिकता।
पानी का कोई मोल नहीं है,
फिर भी हम कीमत लगाते हैं।
आवश्यकता की बात अलग है,
बेमतलब हम इसे बहाते हैं ।
सदुपयोग की सबको आजादी,
फ़िल्टर से होती बहुत बर्बादी।
जलस्तर दिनों दिन भाग रहा है,
प्यासी रहती आधी आबादी।
पानी से कल-कारखाने चलते,
कारखाने में पानी नहीं है बनता।
एक दिन आपस में युद्ध करेंगी,
पानी के लिए दुनियाँ की जनता।
जल-संरक्षण को अपनाएँ,
अगली पीढ़ी के लिए बचाएँ।
जल से कल है बात समझकर,
खुद भी समझें और समझाएँ।
जैनेन्द्र प्रसाद “रवि”
म. वि. बख्तियारपुर (पटना)