फणीश्वर नाथ रेणु
“मैला आँचल” रचने वाला
कथा जगत के ध्रुव तारा
पद्मश्री वापसी कर उसने
लोकतंत्र किया उजियारा।
“परती परिकथा” में उसने
ग्राम्य ले जाकर किया विभोर
“जुलूस” लेकर घर से निकला
पहुँचा ” पलटू बाबू रोड”।
कलाकार को “ठेस” लगी है
“पंचलैट” में रूह कहाँ है
“कितने चौराहे” पार किए
“दीर्घतपा” मिले यहाँ हैं।
“नेपाली क्रान्तिकथा” सर्जक
“तीसरी कसम” के रचयिता
“वन तुलसी की गंध” समेटे
“ठुमरी” गाता सबको भाता।
इस अंचल के आनन पर है
“ऋणजल-धनजल ” की व्यथा
लिखा उसने पन्नों पर है
“श्रुत अश्रुत पूर्व” कथा।
“एक आदिम रात्रि की महक”
साथ में लाया “अगिनखोर”
अच्छे आदमी होते तो हैं
“संवदिया” करते नहीं शोर।
आलोक कुमार मल्लिक
अररिया (बिहार)
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