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प्रकृति के साथ सीख-धीरज कुमार

प्रकृति के साथ सीख

आज बताऊं मैं कुछ बात सीख भरी तुमको।

किससे किससे सीख मिले जीवन में हमको।

अगर सीखना चाहे तो मिल जाए सीख किसी से।

चाहे पौधे-जानवर चाहे इंसानों से।

झुकता हुआ पेड़ भी हमें फल देकर सिखलाता है।

झुककर बने विनम्र यदि तो नाम सदा होता है।

उड़ता हुआ पक्षी भी थककर जमीन पर आता है।

अहंकार घमंड भी एक दिन वैसे चूर-चूर होता है।

एक छोटी सी चींटी, हाथी को भी हराकर धूल चटाती है।

कमजोर नहीं ताकतवर है यह सबक सबको सिखाती है।

पहाड़ को देखो आप अगर तो तन कर खड़ा रहता है।

चाहे कैसी भी परिस्थिति हो हिम्मत कर अडिग रहता है।

नदी सदा बहते रहती, अपना रास्ता खुद बना लेती है।

संघर्ष करो, आगे बढ़ो ये हम सबको समझाती है।

रेगिस्तान सुनसान वीरान अपनी दास्तान सुनाती है।

समय रहते जाग जाओ वरना जीवन वीरान हो जाती है।

सीखो सागर की लहरों से, गहराई में छिपी राज बताती है।

मिलते रहते कितने जल नदी के, उसके स्वभाव बदल न पाती है।

सबक जैसे भी मिलता वहां से तुम सीखो।

आगे बढ़ना है तो सभी से कुछ न कुछ सीखो।

धीरज कुमार
Ums सिलौटा
प्रखंड भभुआ (कैमूर)

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