प्रेमचंद
एकतीस जुलाई अठारह सौ अस्सी को,
“माँ” आनंदी के घर जन्में पुत्र महान।
पिता अजायब राय का उन्होंने बढ़ाया पूरा मान,
और बचपन में उन्होंने रखा उनका नाम धनपत राय,
जो आगे चलकर बने साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद महान।
माता-पिता के ही नहीं, वे देश के हित में भी दिया था अपना योगदान।
पर निजी जिंदगी में पहली पत्नी से नहीं मिला उनका विचार,
पर वहीं दूसरी पत्नी शिवरानी ने निभाया अपनी अर्धांगनी होने के हर अधिकार।
साहित्य की दुनियाँ की मैं क्या करूँ बात,
इस दुनियाँ के थे वो एक अनमोल जवाहरात।
अब करती हूँ मैं उनकी कुछ रचना का अग्रसार,
रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला, गबन और गोदान।
कायस्थ जाति की विशेषता थी भरी उनमें भरमार,
जैसे खुद चित्रगुप्त ने दिया हो विद्वता का वरदान।
इसलिए तो उनके सरल, सहज उर्दू और फारसी लेखन कौशल का दीवाना है पूरा साहित्य समाज।
जातिवाद, अंधविश्वास भ्रूण हत्या जैसे पापों का सदा करते विरोधाभास,
हाँ! हाँ! ऐसा ही है उनके व्यक्तितव का पूरा इतिहास।
कभी गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में दिया साथ।
तो कभी जेल जाकर बढ़ाया था भारतवासियों का हौसला और अंग्रेजों को दिखाया अपनी ठाठ।
आगे चलकर संपादन के रंग-मंच में,
मर्यादा, हंस, माधुरी और जागरण जैसी रचनाओं से बढ़ा दिया पत्रिकाओं का मान।
पर एक समय मनहूस ऐसा भी आया जो आठ अक्टूबर उन्नीस सौ छत्तीस कहलाया,
जिस दिन इस महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद को अमर बनाया।
आँचल शरण
प्रा. वि. टप्पूटोला
प्रखंड बायसी।
जिला – पूर्णिया।
बिहार।