दीप जलाना कर्म है – दोहा छंद गीत
तिमिर घना कितना यहाँ, इसका करें न ध्यान।
दीप जलाना कर्म है, करिए तो श्रीमान।।
शक्ति अँधेरे में कहाँ, टिके दीप के पास।
बात समझ जो भी गया, अटल हुआ विश्वास।।
आओ करके देख लें, एक दीप का दान।
दीप जलाना कर्म है, करिए तो श्रीमान।।०१।।
मन में है बैठा कलुष, अपना पैर पसार।
भाव शुद्धि के दीप से, जगमग रहे विचार।।
अंदर बाहर तम सभी, करता है हलकान।
दीप जलाना कर्म है, करिए तो श्रीमान।।०२।।
लोक परलोक हर जगह, अँध दीप का वास।
एक रहे दूजा हटे, ऐसा है विन्यास।।
बन जाए खुद दीप तो, रौशन सकल जहॉन।
दीप जलाना कर्म है, करिए तो श्रीमान।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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