गोवर्धन- पादाकुलक छंद आधारित गीत
व्रज वनिता के वासी प्यारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।
सुरपति जमकर जल बरसाए।
व्रजवासी जिससे घबराए।।
कान्हा बनकर खेवन हारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।०१।।
व्याकुल बनिता जल से सारा।
लगती थी नदिया की धारा।।
संकट से फिर व्रज को तारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।०२।।
रक्षा सबकी जन-धन करके।
मद सुरपति का मर्दन करके।।
व्रज के जन-जीवन को वारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।०३।।
पूजन गोवर्धन का करना।
सुरपति से क्योंकर अब डरना।।
लगते मोहन के जयकारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।०४।।
हैं हर मुश्किल का हल कान्हा।
होते निर्बल के बल कान्हा।।
कान्हा हरते हैं दुख सारे।
मोहन नख पर पर्वत धारे।।०५।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
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