बनकर कान्हा गिरधारी – गीत
लीलाधर ने भू पर आकर, लीला की अद्भुत न्यारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।
पूजन रोका जब सुरपति का, इंद्र कोप थे दिखलाए।
मेघों को आदेशित करके, जमकर जल को बरसाए।।
त्राहिमाम गोकुल में आया, डूब गई धरती सारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।।०१।।
दृश्य भयंकर गोकुल का था, बह रहा सामान सारा।
गली-गली में जल का तांडव, जैसे नदिया की धारा।।
जन-जीवन व्याकुल हो बैठा, जब सबने हिम्मत हारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।।०२।।
सबको लेकर गोवर्धन पर, मोहन लेकर थें आए।
दंभ इंद्र का खंडित करके, मंद-मंद थे मुस्काए।।
छोटी उँगली पर गोवर्धन, उठा लिए थे बनवारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।।०३।।
देख कृष्ण को ऐसा करते, ग्वाल सभी आगे आए।
डंडों को वे अपने लेकर, भार उठाने को धाए।।
जिसमें छिपकर रहे सुरक्षित, ब्रज के सारे नर-नारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।।०४।।
गायें भी खुश होकर अब तो, लगी वहाँ थी रंभाने।
ऐसा लगता था जैसे वह, सुरपति को लगी चिढ़ाने।
ऐसे मेरे मोहन माधव, करते थें लीला प्यारी।
शोक मिटाए ब्रज वनिता की, बनकर कान्हा गिरधारी।।०५।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

