दशहरा- दोहावली
उस रावण को मारिए, जिसका मन पर राज।
सफल तभी यह दशहरा, कह पाएँगे आज।।०१।।
करते पुतला का दहन, बनकर हम श्री राम।
अंदर रावण है तना, जिसे मिटाना काम।।०२।।
दस मुख रावण का सदा, अवगुण बना प्रतीक।
अंत हुआ जिसका नहीं, कहे दशहरा नीक।।०३।।
रावण ज्ञानी चतुर था, रखता स्वच्छ चरित्र।
लक्ष्य साधने के लिए, खुद से चुना अमित्र।।०४।।
अंदर रावण है छुपा, बाहर बनता राम।
बहुतेरे इस रूप में, आज चलाते काम।।०५।।
रावण का अवगुण सहज, मिलता चारों ओर।
पर थें उसमें गुण कई, जिससे बंधी न डोर।।०६।।
युद्ध सदा ही राम का, होता रावण साथ।
त्रेता चाहे कलि रहे, जय पाते रघुनाथ।।०७।।
धर्म विमुख रावण हुआ, मिटा सकल परिवार।
आज धर्म को भूल सब, चाह रहे अधिकार।।०८।।
लंका रावण राज का, गाते थें सब गीत।
बनते बैरी राम का, रहा न कोई मीत।।०९।।
अहं बैर का त्याग कर, करें राम से प्रेम।
“पाठक” अपने कर्म को, बना रहा है हेम।।१०।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

