सुरभित हो संसार – दोहा छंद
चित विकार से मुक्त हो, निर्मल रहे विचार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।
परहित का नित भाव रख, करिए सारे काम।
चैन मिले चित को सदा, जीवन हो अभिराम।।
करिए ऐसे कर्म जो, दे सबको आधार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।०१
हरिए पीड़ा और की, देकर कुछ सहयोग।
होता हितकर है सदा, सुंदर यह उद्योग।।
मदद जरूरत मंद की, सपना कर साकार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।०२
सौम्य भाव मन में रखे, क्षमाशील हो आप।
सुखमय खुद भी हो सके, रहें सदा निष्पाप।।
चाहत औरों से नहीं, करना है उपकार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।०३
समता रखिए कर्म में, त्याग हमेशा मोह।
औरों का भी लीजिए, समय-समय पर टोह।।
सौम्य भाव से हो प्रकट, चित का हर उद्गार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।०४
व्यर्थ सदा है कोसना, दोष पराया मान।
जड़ चेतन सबसे रखें, अपनों सी पहचान।।
आस-पास सबसे सदा, कुशल रहे व्यवहार।
पावन मन निज राखिए, सुरभित हो संसार।।०५
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

