याद उन्हीं की आती है।
निशि-वासर को चैन नहीं है,पीड़ा वाण चलाती है।
छोड़ चले जाते हैं जग को,याद उन्हीं की आती है।।
मेरी पीड़ा हरनेवाली,पीड़ा देकर कहाॅं चली।
सिंधु बीच तू भाग गई रे,रोती छोड़ी एक लली।।
अब जीवन में रहा शेष क्या,मुश्किल घड़ी रुलाती है।
याद उन्हीं की आती है,,,
तू जीवन का अर्थ बदलकर,दिखा गई तू मजबूरी।
जहाॅं पहुॅंच जन लौट न पाता,हो जाता जीवन पूरी।।
जो आया ना सदा रहेगा,बीती बात सताती है।
याद उन्हीं की आती है,,,
तेरा तन अब दृश्य नहीं है,ख्वाबों में तू जिंदा है।
ऐसा क्यों लगता है साथी,बिना पंख परिंदा है।।
ख्वाबों के तू शीश-महल से,बारंबार मुस्काती है।
याद उन्हीं की आती है,,,
इतना तो सच है दुनिया में,आया है जो जाएगा।
काल बिना जग से जो जाए,मुश्किल घड़ी बनाएगा।।
कह ‘अनजान’सुनो रे भाई,विधना खेल दिखाती है।
याद उन्हीं की आती है,,,
याद तुम्हारी आती है,,,
कवि रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरबे भदौर
04jun 2023

