राष्ट्रपिता
धन्य “धरा” हो तेरी धरती
एक देश-भक्त ने जन्म लिया
कलयुग के “करतार” हो जैसे
माँ ने “मोहन” नाम दिया ।
राजकोट के राज दुलारे
माता “पुतली बाई” थीं ,
करमचन्द बापू थे उनके
घर में खुशियाँ छाई थी।
देश-विदेश में शिक्षा पाई
रंग विदेशी चढ़ न सका ,
त्याग दिये अपने सूख सारे
तन पे लंगोटी बांध लिया ।
गुलामी की बेड़ी में जकड़ी
मातृ-भूमि पुकार उठी ,
निकल पड़े थे मुक्त कराने
सत्य की लेकर एक सोटी ।
कर न सकी थी जो तलवारें
वह “सत्याग्रह” ने काम किया ,
सत्य, अहिंसा का शंख-नाद कर
शत्रु का काम तमाम किया ।
मुक्त हुई थी “भारत माता”
सदियों की गुलामी से ,
बचा लिया था जन्म-भूमि को
बैरी के संग नीलामी से ।
“राष्ट्र-प्रेम” की बेदी पर
प्राणों का बलिदान किया
तभी तो दुनियाँ ने बापू को
“राष्ट्रपिता” का नाम दिया।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार
0 Likes