माँ की लाल साड़ी
अलमारी के कोने में अब भी टंगी है वो लाल साड़ी,
जिसमें बसती है माँ की मुस्कान — प्यारी, आत्मीय, सादगी से भरी।
दीवाली की रात हो या छठ की भोर,
हर त्योहार पर वही साड़ी — माँ का गर्व, माँ का श्रृंगार और माँ का प्यार ।
न उन्हें गहनों की चाह थी, न साज-सज्जा की दरकार,
बस लाल साड़ी में ही दिखती थी उनकी पहचान और संसार।
जब वह आँचल बाँधती थीं, चारों ओर उजाला फैल जाता था,
हर दिशा में जैसे उनका स्नेह, धूप बनकर चमक जाता था।
अब जब वे नहीं हैं…
तो त्योहार भी कुछ सूने लगते हैं,
पर लाल साड़ी की तहों में, अब भी उनकी यादों के साथ जीते हैं ।
उसकी तहों में बसती है दूब, तुलसी, और ममता की डोर,
माँ की लाल साड़ी — अब बन गई है हमारे पूजा की सबसे पवित्र सिरमौर ।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल
1 Likes

