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साथी हाथ बढ़ाना- देव कांत मिश्र दिव्य

साथी हाथ बढ़ाना

मेरे साथी हाथ बढ़ाना
गिरते हुए को तू उठाना।
कर्म पथ से विचलित मनुज को
सद्कर्म का मार्ग दिखाना।।
मेरे साथी——
उर में भाव सदा हो पुष्पित
नूतन कलियाँ हो नित पल्लवित।
अपने श्रम सीकर से मानव
एक मनहर प्रसून खिलाना।।
मेरे साथी—–
सदा ईश पर ध्यान लगाना
भाव सुघड़ हृदय में जगाना।
बीते कर्म सदा परहित में
बात औरों को यह बतलाना।।
मेरे साथी—–
नयी उमंगें लाकर जन में
सदा चमक नूतन बिखराना।
अमित तोष आनंद बढ़ाकर
उनका जीवन सुखद बनाना।।
मेरे साथी——
राहों में मत शूल बिछाना
प्रेम भाव का फूल उगाना।
आतप व्यथित सदा मानव में
नित नया एक विश्वास जगाना।।
मेरे साथी—–
मंजिल गर पाना है एक दिन
चाह मदद की हरदम रखना।
जैसे सूरज तम को हरता
भाव सदा ऐसा ही लाना।।
मेरे साथी——

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भागलपुर, बिहार

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