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शब्द और कवि-प्रभात रमण

शब्द और कवि

कविता के शब्द नहीं
वह तो उसका एक बेटा है
कुछ नन्हा सा कुछ बड़ा हुआ
कुछ तो बिल्कुल ही छोटा है
नटखट,चपल,चालाक वह
रातों को मुझे जगाता है
लिखते बहुत हो, कवि बन गए
कहकर मुझे चिढ़ाता है।
नए नए भावों को लाता
नित नए रूप दिखलाता है
नए नए शीर्षकों से
अवगत मुझे कराता है
कभी भूत, भविष्य, वर्तमान के
विषयो पर लिखने को उकसाता है
सुख, दुख, खुशियाँ और आंशू से
मुझको वह बहलाता है
मन में वह बैठ गया है
सदा ही उसको बहकाता है
कुछ लिख कर जब तक दे ना दूँ
तब तक वह झल्लाता है
रामायण, गीता, कुरान का
मुझको पाठ पढाता है
ईश्वर, अल्लाह हैं नाम अनेक
पर रूप एक
मुझको वह समझाता है
कभी राष्ट्रभक्त, कभी मातृभक्त
गुरु भक्त वो मुझे बनाता है।
इंसान के सद्गुणों पर
और कभी वेद पुराणों पर
कुछ लिखवाने को आ जाता है
कभी ऐसे रहस्य बताता है
लिखने को मैं डर जाता हूँ
कभी ऐसी बात लिखाता है
मन करता है, मर जाता हूँ
फिर मुझ पर दया दिखाता है
मुझे सच्ची बात बताता है
छोटे बालक के तरह कभी
हठ करता है, अकुलाता है
हरदिन उसका एक नया रूप
मुझको बहुत लुभाता है
मैं खुद को बहुत समझाता हूँ
पर कलम चला ही जाता है
फिर आकर वो कागज में बैठ
अपनी बात दुहराता है
लिखते बहुत हो, कवि बन गए
कहकर मुझे चिढ़ाता है ।।

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
प्रखण्ड-फारबिसगंज
जिला-अररिया

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