शब्द
शब्द भेदी बाण जब चला होगा !!
कोई हुआ है घायल,
क्या उसे पता चला होगा?
ये कमान से निकला तीर नहीं,
ये तो शब्दों से चला,
दिल पर लगा कोई पीर होगा,
इस तीर से तन नहीं मन भेदा जाता है,
वेदना कितनी हुई,
ये कौन जान पाता है?
शब्द ही सम्पत्ति है,
शब्द ही प्राण हैं,
कोई मोल नहीं इसका मगर फिर भी,
इंसान कृपण इतना कि
मीठे छोड़ कड़वे बोल ही आजमाता है,
मीठे बोल बोलकर
बिगड़ा काम भी बन जाता है,
दुश्मन भी दोस्त बन जाता है,
तो बोलिए ना दो मीठे बोल
इसमें कहाँ कोई खर्च आता है?
शब्द की ही जादूगरी है
सबका मन शीतल कर जाता है।
ज्योति कुमारी, चान्दन, बाँका
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