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शहीद ए आज़म भगत सिंह-डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

Dr. Anupama

 

था जिगर में हौसला कि
                      सिंह” सा दहाड़ था,                       जुबा में लिये  “इन्कलाब”
वह मिटने को तैयार था।

सुन गर्जना से हिल उठी
जेल की “दीवार” थी,
वह चूम रहा बेड़ियों को
भर रहा हुंकार भी ।

लिया वचन कराएगा वह
मुक्त माँ की  “आन” को,
                   चल पड़ा कुर्बान करने                       सपूत अपने प्राण को।

देखा नहीं था दुश्मनों ने
ऐसे क्रांति  “वीर” को,
देखकर थे सब अचंभित
हो गये अधीर वो।

बढ़के आगे लिया चूम
फंदे से लगी  “मौत” को,
झूल गया देकर दिलासा
भारत माँ की  “जीत” को।

था नहीं कोई और वह
माँ भारती का  “लाल” था,
नाम उसका “भगत सिंह”
इस देश का “मशाल” था।

स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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