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श्री गुरु महिमा-शुकदेव पाठक

श्री गुरु महिमा

गुरु आत्मा, गुरु परमात्मा
गुरु है ओम्, गुरु ही व्योम
गुरु निवारण, गुरु जगतारण
गुरु का सम्मान करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु हर्षावत, गुरु दर्शावत
गुरु है शब्द, गुरु ही सनातन
गुरु हितकारी, गुरु अधिकारी
गुरु पर अभिमान करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु है अगम, गुरु ही निगम
गुरु ही परम, गुरु ही चरम
गुरु दयानिधि, गुरु अनादि
गुरु का ही ध्यान करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु है सरगुन, गुरु ही निरगुन
गुरु है भक्ति, गुरु ही शक्ति
गुरु है पावन, पाप नसावन
गुरु की ही पुकार करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु ज्ञान दाता, विज्ञान प्रदाता
गुरु है चंदन, गुरु ही वंदन
गुरु है अवतार, गुरु ही करतार गुरु की सेवा सत्कार करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु है कड़ी, गुरु ही मणि,
गुरु बनाता, गुरु ही मिटाता
गुरु सिद्धाता, गुरु ही विधाता गुरु की पहचान करो, अपना तुम उद्धार करो।
गुरु आनन्द, पूर्ण सुखकंद
गुरु बलिहारी, गोविंद लखाई
गुरु से अनुशासन, गुरु ही प्रशासन गुरु को प्रथम प्रणाम करो, अपना तुम उद्धार करो।

✍️ शुकदेव पाठक
म. वि. कर्मा बसंतपुर
कुटुंबा औरंगाबाद

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