पिय मन भायो
मैं तो सखी बस प्रेम पुजारन,
पिय के हिय में रहूँ सिया बन।
मैं भोली हूँ प्यार में जोगन,
बनी रहूँ मैं पिय की दुल्हन।
कार्तिक मास चतुर्थी आयो,
मेरा मन पिय संग ही भायो।
नव वसन नव मन यौवन,
उन संग प्रेम नवांकुर पायो।
करवा चौथ का व्रत रख कर मैं,
शिव शम्भू चन्द्र विनवायो।
धन्य प्रभु धन्य शिव शंकर,
गौरी सुत तुमको गुहरायो।
गजरा कजरा बिंदी टीका
सिंदूर कंगना हार जमायो,
पायल पैजनी कमर करघनी,
नख शिख चमक – दमक है भायो।
निर्जल निराहार रहकर मैं
हुई अपर्णा मन रस भायो,
मुझ में भरा प्रेम रस ऐसा,
यह ब्रत हमहुँ सहज कर पायो।
चंद्र मुख ताकि चलनी सो,
नजर उतारी चंद्र गुहरायो।
सुन ले चाँद तू है अति सुंदर,
तुमसे भी कुछ कम नही पायो।
व्रत उपवास ध्यान अरु पूजा,
अर्ध्य अम्बु आनंद अकुलायो।
साथ हमेशा, प्यार अनंता,
प्रभु से विनती हमहुँ दोहरायो।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी।
उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय शरीफगंज कटिहार

