सृजनहार प्रभु
हे जग के सृजनहार प्रभु
तुम हो पालनहार प्रभु।
दुनिया बनाई कितनी सुंदर
हरी धरती नीला समंदर
नदियाँ, पहाड, चाँद, सितारे
उडते रंग बिरंगे पंछी सारे
मन को लुभाते इन्द्रधनुष
गोल गोल बारिश की बूँद
मौसम के विभिन्न प्रकार
पतझड और वसंत की बहार
करते हो प्रकृति का श्रृंगार प्रभु
तुम हो जग के सृजनहार प्रभु।
सबके लहू का एक लाल रंग
मानव का मानव के संग
रिश्ता तुमने ही तो बनाया
हर परिस्थिति में जीने की आस
हार कर जीत जाने का विश्वास
मन मे तुमने ही तो जगाया
कुछ भी नहीं है स्थिर जग में
हर चीज बदलती है तय समय में
बस नहीं बदलते हो तुम प्रभु
है तुम्हारा ऐसा आकार प्रभु
तुम हो निराकार प्रभु
करो हम पर भी उपकार प्रभु
बन जाओ तारणहार प्रभु।
कुमारी अनु साह
प्रा.वि आदिवासी टोला भीमपुर
छातापुर सुपौल
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