Site icon पद्यपंकज

जब से आया स्टेफ्री- नीतू रानी

जबसे आया स्टेफ्री,
लडकियाँ हो गई बिल्कुल फ्री।

न लेना पड़ता है उसे कोई कपड़ा,
छूट गया कपड़ा लेने का लफड़ा।

बदलती है दिन में दो स्टेफ्री,
न रहती है वो अब डरी- डरी।

लग जाता था पहले कपड़े में दाग,
लज्जा से हो जाती थी वो बीमार।

कपड़ा लेने से रहता था डर,
अब स्टेफ्री लेकर करती वो सफर।

इस समय रखती वो अपने आप पर ख्याल,
पीती है अदरक, वाली चाय लाल।

शीशे की बोतल में लेती है गर्म पानी,
पेट पर सरका करती खत्म दर्द की कहानी।

स्टेफ्री आया वह करती सब काम,
बस पैंतीस, चालीस, है इसका कोई दाम।

घर का सारा काम कर विद्यालय भी जाती,
खेल कूद करके भी वो आती।

स्कूल में बना है लड़कियों के लिए सहेली कक्ष,
अब धीरे- धीरे हो रही है सभी लड़कियांँ दक्ष।

सभी लड़कियांँ घर- घर जाकर कर रही सबको जागरूक,
छूआछूत न इसको मानें न फेकें इस पर थूक।

लड़कियों के लिए माहवारी आया लेकर खुशियों की सौगात,
माँ बनने के लिए सबसे पहले होती इसी से शुरुआत।

जो लड़की माहवारी न होती उसको घर से निकालती उसकी सास,
उस लड़की की पूरी न होती माँ बनने की आस।

माहवारी शुरू हुई आया घर स्टेफ्री,
अब डरने की बात न रही अब लड़कियांँ हो गई इससे फ्री।


नीतू रानी (विशिष्ट शिक्षिका)
स्कूल -म०वि० रहमत नगर सदर मुख्यालय पूर्णियाँ।

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version