सूरज दादा
आसमान में सूरज दादा,
दूर हैं हमसे बहुत ज्यादा।
रात में करते कहां बसेरा,
सुबह में लाते साथ सवेरा।
अंधेरे को हैं दूर भगाते,
घर पर आकर हमें जगाते।
फूल खिलाते हैं बागों में,
माली गूंथता उसे धागों में।
उस्मा होता सबमें संचार,
ऊर्जा पाता जिससे संसार।
ग्रीष्म ऋतु में आंख दिखाते,
वर्षा से डरकर दुम दबाते।
बसंत कलियों को सहलाता,
सर्दी भीगी बिल्ली बनाता।
रात को आता चांद गगन में,
छुप जाते किस कोप भवन में।
चांद की सुंदरता से जलते,
छुप-छुपकर तुम आहें भरते।
तुम हो तारों के भी तारे,
चंद्रमा चमकता है तेरे सहारे।
उसके रूप का करो गुणगान,
तुमसे उसकी भी है पहचान।
तुमसे पेड़ों की हरियाली,
ऑक्सीजन का करता रखवाली।
तुम से सबको मिलता जीवन,
तुमसे शोभा पाता नील गगन।
तुम से दुनिया में उजाला,
ज्ञान, दान में सबसे आला।
परोपकारी हो सबसे महान,
सबसे ऊंचा जैसे आसमान।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’,
पटना, बिहार