टीचर्स ऑफ बिहार
सहर्ष करती हूं मैं नमन
टी ओ बी के सृजनहार को
थी केवल कच्ची मिट्टी
तूने हीं सार्थक आकार दिया ।
क्या करूं मैं तेरा गुणगान
तूने ही तो दिया मुझे नई पहचान
कार्य तुम्हारा है अनूठा
सत्य मार्ग पर चले सब
न हो कोई झूठा ।
भिन्न-भिन्न रंगों से सजा
हमारा अद्भूत परिवार
अपने कार्य कलापों से
नित करते रहते नए चमत्कार ।
हैं तुम्हारे कितने हीं रूप
कहीं गद्य में, तो कहीं पद्य में
कहीं कला सृजन, कहीं आलेख में
तुम रहते सदैव निहित ।
बातें हमारे मन की
मन में हीं रह जाती
न भाव मन की कभी
कोरे कागज पर उतर पाती ।
अंदर हीं अंदर भावना
हमारी दब जाती
जो टी ओ बी पर
गद्यगुंजन, पद्यपंकज
संग आलेख न आती ।
मैं क्या करूं तुम्हारा बखान
क्या और कैसे करूं मैं तुम्हारा गुणगान
ये होगा आसमां में चमके सूरज को
एक छोटा दीप दिखाने समान ।
बस यही दुआ करती हूं
टी ओ बी के दूसरे वर्षगांठ पर
नित निरंतर यूं हीं
चलते रहे सिलसिला
सफ़लता की राह पर ।
मधु कुमारी
कटिहार