तिरंगा
आन में उसकी शान में उसकी,
हाँ! प्राण मुझे लुटाना है।
कसम है भारत माता की
सदा यूँ तिरंगा लहराना है।
हो चाहे कोई कौम फ़िरंगी,
हो चाहे या खुद की जंगी।
चाहे तीर चले तलवार पड़े,
चाहे मिट्टी में अब प्राण गरे।
हर हाल में उसको मिटाना है,
कसम है भारत माता की,
सदा यूँ तिरंगा लहराना है।
नदी-नाला चाहे पेड़ खड़े,
सिन्धु की धारा चाहे हिम चढ़े।
उनकी रक्षा है अधिकार मेरा,
उठा आँख जो देखा तूने,
हो टुकड़ा इन्सान तेरा।
नाम की परवाह नहीं मुझे,
माँ! का नाम बचाना है।
कसम है भारत माता की,
सदा यूँ तिरंगा लहराना है।
चमकते हम उसके ही नाम से,
जहाँ बजती घंटा हर शाम में।
अज़ान से जहाँ होती भोर हो,
उठती चिड़िया जहाँ होती शोर हो।
हरियाली फैला जहाँ खेत में,
मना खुशियाँ मिठाई देती जहाँ भेंट में।
इस देश को कैसे झुकाना है,
कसम है भारत माता की
सदा यूँ तिरंगा लहराना है।
अम्बेडकर की जहाँ है नीति,
संत-पुरोहित की चलती है रीति।
द्वेष-भाव को गले लगाकर,
हम स्वदेशी उधम मचाते हैं।
करे खंडन जो देश मेरे अब,
उनको ही गले लगाना है।
कसम है भारत माता की,
सदा यूँ तिरंगा लहराना है।
भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ पूर्णिया (बिहार)