वसुधा
मैं “उसर” वसुधा थी जग में
जबतक तूझे ना जन्म दिया,
किया आबाद “कोख” को मेरे
मुझको “माँ” का नाम दिया।।
तरू, द्रुम, पेड़, वृक्ष और शाखी
यहाँ शृष्टि ने तेरा नाम दिया,
मैं भी बन गई “धरती” माता
“जग” ने मुझे सम्मान दिया।।
वन-उपवन और कानन की
तुमने तो शोभा बढ़ा दिया,
मेरे हृदय के “आंगन” में
खुशियों का फुल खिला दिया।
हर जीव जगत का “ऋणी” है
“स्वच्छ” सांसो का दान दिया,
करे कोई “प्रहार” जो तुझ पर
“ममता” पर मेरी चोट दिया।।
मुझे “धरती” माँ कहने वाले
यह कैसा मेरा “उद्धार” किया,
मेरे “हरे-भरे इन पेड़ों को
कुल्हाड़ी बनकर काट दिया।।
मुझे जख्म न दो दुनियावालों
मैनें तुझपर उपकार किया,
तेरे जीवन में हरियाली देकर
“माँ” जैसा ही छाँव दिया ।।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 🙏🙏
मुजफ्फरपुर, बिहार
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