वीर सपूत
मातृ भूमि का सच्चा सेवक
वीर सपूत कहलाता।
पर्वत, नदियांँ व देख समन्दर
कभी नहीं घबराता।।
जब तक मंजिल हाथ न आये
आगे ही बढ़ता जाता।
शाम सबेरे देशभक्ति के
सबको गीत सुनाता।
बर्फीली चट्टानों और तूफानों से
सजग हमेशा रहता।।
ठंढी गर्मी और वर्षा को
तन पर अपने सहता।।
आती याद उसे जब घर की
थोड़ा मन को वह समझाता।
जीवन का तनिक मोह न करता
दुश्मन से टकराता।।
गोली से गोली की भाषा
वह उसको बतलाता।
फिर न लौट आए वापस
ऐसा सबको सिखलाता।।
मातृभूमि की रक्षा खातिर
सीने पर गोली खाता।
प्राण निछावर कर सीमा पर
मांँ का कर्ज चुकाता।।
हंँसते-हंँसते आखिर दम तक
जय-जय भारत कहता।
मातृभूमि का सच्चा सेवक
वीर सपूत कहलाता।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुल्तानगंज
भागलपुर, बिहार
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