विदा होते पल
विदा होते पल, हमेशा करता जाता समय का छल!
न लौट पाने की आशा और न छू पाने के वे कल!!
खट्ठी-मीठी, भूली-बिसरी, यादों के वे सुनहरे पल!
समय! तू धीरे-धीरे, मेरे साथ-साथ तू चलता चल!!
🕛
मेरे आगे न तुम्हारे पीछे रहने का कोई है गल!
अधूरे कार्य, रिक्तता, भरोसे को भर पाने का!!
दिल समझाने का, समय क्यों नहीं जाता टल!
ईर्ष्या, डाह, जलन, लोभ क्यों नहीं जाता है जल!!
🕒
इस चुभन से पार पाने और निकल जाने का!
पल छिन व क्षणिक आवेश को रोक पाने का!!
नई दिशा, रास्ते के मोड़ को समझ पाने का!
यही जीवन है जीवन की रीत सुलझाने का!!
🕕
गिले और शिकवे भूलकर हाथ बढ़ाने का!
अंतर्मन की पीड़ाओं की जलन बुझाने का!!
जीवन के प्रीत-रीत को पूरा कर दिखाने का!
विदा होते प्रणय है समय! तू धीरे-धीरे चल!!
🕘
समय तू दगा न दे इस अनमोल जीवन-प्राण का!
न रुकूंगा, न झूकू़ंगा सदा भान रखूंगा पल-पल का!!
गर रुका, झूका और गिरा जरुर करना हमसे गल!
विदा होते पल, मत कर छल, मन जाता है पूरा खल!!
🕛
विदा होते पल हमेशा करता जाता समय का छल!
न लौट पाने की आशा और न छू पाने के वे कल!!
खट्टी-मीठी भूली-बिसरी यादों के वे सुनहरे पल!
समय! तू धीरे-धीरे, मेरे साथ-साथ तू चलता चल!!
🕒
सुरेश कुमार गौरव
मेरी स्वरचित मौलिक रचना
@सर्वाधिकार सुरक्षित