विधाता छंद मुक्तक
जिसे रोना नहीं आया उसे कोई नहीं समझा।
गमों के दौर से बोलो नहीं वह कौन जो उलझा।
सदा सबको सहारा तो दिया लेकिन बताओ अब,
वही खुद को सहारे से कभी रहता कहाँ सुलझा।।०१
जमाना कब किसे कह दे किनारे छोड़ जाते हैं।
नहीं हो पास पैसा तो सभी मुख मोड़ जाते हैं।
यहाँ है मोल पैसे का सभी रिश्ते लगे उलझे,
यही दस्तूर दुनिया की सभी दिल तोड़ जाते हैं।।०२
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
0 Likes

