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विषपान-धर्मेन्द्र कुमार ठाकुर

Dharmendra

विषपान

सोचना हमें किस पथ पर चलना होगा
सामने है संकटों का जखीरा पत्थरों का ढेर है
रास्ते है टेडी-मेड़ी सामने काँटो भरा पेड़ है।
हीत-अनहित की बात मत कर चलने को तैयारी कर।
एक मे अनेक राह चुनकर चलना होगा
बिषपान तो करना होगा।
राह में लोभ-लालच का पेड़ लगे हैं
अनदेखा कर चलना होगा
बिषपान तो करना होगा
हार में जीत देख सीख हमें मिलती है
नई ज्ञान को सीखना होगा।
नयी राह तो ढूंढना होगा
विषपान तो करना होगा
चाहिए अगर हमें अमृत कलश
समुद्र मंथन तो करना होगा
बाधाओं से लड़ना होगा
पीछे मुड़कर मत देखो
चाहे छुटा घर द्वार, चाहे कोई दे आवाज
गिर सम्हल चलना होगा
विषपान तो करना होगा
चाहिए हमें अगर स्वर्ग का द्वार
प्राण प्रतिष्ठा करना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा
विघ्नों को कुचलना होगा
विषपान तो करना होगा।
यदि वीर कहलाना है
भगत सिंह तो बनना होगा
चाहेंगे इतिहास में अमर होना
विवेकानंद तो बनाना होगा
विषपान तो करना होगा।

धर्मेन्द्र कुमार ठाकुर
नव सृ. प्रा. वि. नेमानी टोला
बेलसरा गोठ रानीगंज

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