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वृद्धावस्था – गिरिंद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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शैशव, बाल्य, किशोर, युवा,
से होकर तुम बने हो वृद्ध,
तुम्हारा असली,बड़ा गुण है,
हर स्थिति में स्थिर औ’ सिद्ध,
ज्ञान, विज्ञान, अनुभव में गम्भीर,
हर परिस्थति में अटल, धीर और वीर,
पैतृक सम्पत्ति के संरक्षण-संवर्द्धन पर विशेष ध्यान,
देव, पितर्, ऋषियों, मीतों, अतिथियों का सम्मान,
कुल-परिवार, परिजन, पुरजन सब रहे सदा संभ्रांत,
अनुशासन औ आशीर्वाद के संग करते सबके परेशानियों का अन्त,
विषम परिस्थितियों में संतति को ‘अभी मैं हूँ, तो तुम्हें कैसी चिंता’ कह उत्साह देते,
उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर आश्रय और स्नेह से परिपूर्ण हाथ हैं रख देते,
अपनी सन्तति को कर्त्तव्य समझाते, निरन्तर प्रगति के लिए उकसाते,
ऊंचे पदों की प्रेरणा देकर, कई कई प्रगतिशील बातें हैं समझाते,
परिजन, पुरजन, भूमि, सम्पदा सबका पूरा पूरा रखते ध्यान,
जिस घर में बाल- वृद्ध-बुजुर्ग नहीं हो, वह है घर मानो श्मशान,
बच्चों को पढ़ाई के प्रति सतर्क करो,
उनसे थोड़ा-सा कुछ तर्क वितर्क करो,
युवाओं को भी डाँटो औ अनुभवपूर्ण बात सुनाओ,
अपनी दूरदृष्टि से उनको जीवन की नयी राह दिखाओ,
खुद को दुर्बल कहकर तुम खुद का अपमान न करो,
बच्चों के बीच तुम बच्चे बनकर अच्छी अच्छी बातें सिखलाओ,
कई धूप छाँव तुम देखे, अनुभव व्यर्थ क्यों गंवाते हो,
सदा नवीन बने रहकर क्यों न नये फसल लगाते हो?
बच्चों, युवाओं से भी नवीन नवीन चीजों को सीखो,
उनके बीच बैठकर थोड़ा क्यों न कुछ सिखलाते हो?
तुम्हारा निरन्तर सीखना तुम्हें नवीन बनाए रखेगा,
खुद को सदा स्फूर्त रखो, तन मन निखर जाएगा,
थोड़ी सी पूजा पाठ करो, थोड़ा तीरथ-ध्यान करो,
धर्म-अध्यात्म के संग विज्ञान पर भी सन्धान करो,
अपने वृद्ध समाज के मध्य ताश कम खेलो थोड़ा,
कुछ युवा पीढ़ी, राष्ट्र के विकास की बात करो,
अपने प्रेमपूर्ण दृढ़ अनुशासन का प्रसार करो,
समाज की हर बुराईयों पर तुम कुठाराघात करो,
परिवार की हो प्रगति, समाज में नव परिवर्तन,
युवजन समृद्ध बने, इस पर भी थोड़ी बात करो,
सदा वर्तमान पर विचार करो, इसी में दिन-रात करो,
अपने पसंदीदा विधाओं में निरन्तर तुम रियाज करो,
हास्य-विनोद-साहित्य के संग कुछ कुछ विद्याभ्यास करो,
प्रतिदिन कुछ कार्य सुनिश्चित कर पूर्ण कर खुद को तुम संतुष्ट करो,
निज तन-मन-बुद्धि के संग भगवद् पूजन, भजन से निज आत्मा को परिपुष्ट करो ।
…..गिरीन्द्र मोहन झा

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