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वाह रे इंसान.. जैनेंद्र प्रसाद रवि

वाह रे इंसान
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धन-दौलत सब माल-खजाना यहीं धरा रह जाएगा,
खाली हाथ तू आया बंदे खाली हाथ ही जाएगा।
मूर्ति की पूजा करता है माता-पिता से प्यार नहीं,
पद-पैसा पा इतराता है भाई से उचित व्यवहार नहीं।
जिस डाल ने दिया सहारा उसी डाल को काट दिया,
स्वार्थ की खातिर धर्म-जाति में इंसानों को बांँट दिया।
थोड़ी सी लालच में मानव खून का प्यास बन बैठा,
सुत-दारा सम्मान के मद में रहता है हरदम ऐठा।
श्वानों को हैं दूध पिलाते मानव से है प्यार नहीं,
कलयुग में उनको मानव कहलाने का अधिकार नहीं।
मदिरा पीकर मांँ-बहन से तन की प्यास बुझाते हो,
थोड़ा सा मतभेद हुआ तो तुरत कसाई बन जाते हो।
बलात्कार-हत्या करने में तनिक नहीं घबराते हो,
विधवा-बच्चों की आंँसू पर खुलकर जश्न मानते हो।
बेबस-लाचारों के ऊपर अपनी अकड़ दिखाते हो,
बलवानों के आगे कैसे झुक कर शीश नवाते हो?
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में खुलकर दान चढ़ाते हो,
अपाहिज-भिखारी को केवल सिक्का एक बढ़ाते हो।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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