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योग दिवस-गिरिधर कुमार

Giridhar

योग दिवस

योग यह
संयोग यह
प्रकृति का मेल यह
मानव और सृष्टि का
कोलाहल से विरक्ति का
जीवन का प्रथम स्रोत है यह
स्थिर चित्त, मनोयोग है यह।

पूरब की यह सम्पदा है
जिसे दुनिया ने अपनाया
भारत की आर्षभूमि ने
सबको यह समझाया
मात्र प्रगति, भौतिक विलास
जीवन का उद्देश्य नहीं
इससे बहुत आगे है जीवन
बस स्वार्थ का खेल नहीं।

सुघड़ काया, स्वस्थ मन मंदिर
ओम का यह नाद है
योग है, एक साधना है
सुमधुर परिणाम है
शांति, प्रशांति
भाव परोपकार के
स्वयं समर्थ, सर्वहित भाव के
उच्च मूल्य मानकों की
यह संवेदना है
योग सभी के लिए
सर्वहित चेतना है।

हँसती प्रकृति
तुम भी हँसो
छोड़ो यह वह सब
योग करो
धरती माँ के प्रांगण में
बरगद के इस आँगन में
यहाँ ही जीवन पलता है
भाग्य यहीं सँवरता है।

आओ रोगों से मुक्ति हो
काया और मन की तृप्ति हो
आओ यह परचम लहरायें
योग को अपनायें।
लें योग दिवस पर यह संकल्प
सुंदर जीवन का भाव प्रबल
यह जीवन का सम्मान है
यह भारत का अभिमान है।

गिरिधर कुमार

म. वि. बैरिया

अमदाबाद, कटिहार

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