हजारों वर्ष घटी पूर्व की घटना,
हा! कलियुग में भी जारी है।
बहन, भतीजी, माँ ,भांजी की
अब भी खींची जाती साड़ी है।
हा! आज भी दानवता जग में ,
आज भी दुःशासन की अंगड़ाई है।
इससे दिल सदा व्यथित होता,
यह मानवता की बड़ी खाई है।।
खून खौलता है दिल में ,
यह कैसा अमानवीय कुकर्म है?
है हर नारी की अपनी गरिमा,
कोई क्यों करता दुष्कर्म है ?
है हर नारी की मर्यादा अपनी,
हर नारी का अपना संस्कार है।
न देखी जाती कोई जाति धर्म ,
हर नारी जगत का आधार है।।
दुष्कर्मी कोई मानव नहीं,
यह दानवता का स्वरूप है।
इसे तत्क्षण वहीं दंडित करना,
यह छद्म मानवता का प्रतिरूप है।
तू नर कहलाने के योग्य नहीं,
तेरे किसी धर्म का तर्क नहीं।
अत्याचारी हो तू इस जग के,
दानव और तुझमें फर्क नहीं।
ऊपर से भद्र बन बैठे हो ,
भीतर की लंपटता गई नहीं।
भीतर बन बैठा पापी मन ,
जीवन की कलुषता नई नहीं।
ऐसे दुर्जन को पहचानो पहले ,
सब मिल उसका तिरस्कार करो।
उसके छद्म रूप मानवता को ,
न कोई तनिक स्वीकार करो।
कब तक अपमानित, लज्जित ,
होती रहेंगी हमारी माँ, बहना।
तत्क्षण ही दो उसे प्राणदंड ,
है भद्र जनों का यही कहना।
विघ्न बाधाओं को करो ध्वस्त ,
अपने दुश्मनों को करो पस्त।
जिसमें मानवता का अंश नहीं,
उस दानव को तुम करो त्रस्त।
हर माँ, बहना से कहना है ,
अब रोना- धोना बंद करो।
वह घात करे ; प्रतिघात करो,
तत्क्षण चेहरा बेनकाब करो।
तू अबला नहीं तू सबला हो,
अब भरो हुंकार, डरें पापी जन।
अब मौन नहीं, तू मुखर बनो,
जिससे भाग फिरे तुझसे दुर्जन।
उदघोष करो, अब तेरा खैर नहीं ,
मैं हूँ नही अबला, तेरा ठौर नहीं।
मैं हूँ इस जगत की आदि अखंड ,
मैं हूँ इस जगत की शक्ति प्रचंड।
मैं घर- घर लक्ष्मी स्वरूपा हूँ ,
मैं ही ब्रह्माणी रूपा हूँ।
सृष्टि की शक्ति मुझमें है ,
मैं ही दुर्गा शक्ति प्रतिरूपा हूँ।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा जिला- मुजफ्फरपुर