Site icon पद्यपंकज

आत्मकथा – Mohan Murari

oplus_1059

आत्मकथा

छिन गई  आवाज़ अपनी,

कट गई जिह्वा मेरी।

वह लेखनी भी साथ नहीं अब,

जो लिख सके कुछ बात सही।

परिचय की मोहताज़ नहीं मैं,

फिर भी अपनी जन्मभूमि पर ही बेगानी-सी दिखती हूँ।

यह बात अब मुझे सहन नहीं,

कोई और नहीं — मैं हिन्दी हूँ।

हाँ, मैं हिन्दी हूँ।

अहिन्दी कहलाने में गर्व कर रहे सभी,

इस हिन्दी को भुलाने में अंग्रेज़ी भी कम नहीं।

©मोहन मुरारी 

   प्रधान शिक्षक 

प्रा0 वि0 मनहर धमुआरा 

अलीनगर, दरभंगा 

   बिहार 

मो0 -6201477505

0 Likes
Spread the love
Exit mobile version